Sunday 9 August 2015

शोर

कहीं दूर जहाँ कोई नहीं ,
एक आवाज़ है ,
कहीं पास जहां कोई नहीं,
एक शोर है।
आवाज़। … आवाज़ है उन्
टूटे बिखरते सपनो की ,
और शोर है आपस में टकराते,
ज़िन्दगी की कुछ सच्चाइयों की। ।

दूर जाकर समेट लायी ,
जलते हुए ख़ाबों की राख को ,
पास पहुंची तोह शोर की फूँक ने ,
फिर दूर कर दिया उन् टूटे तारों को।

कहीं दूर अब देखती ही नहीं ,
उस आवाज़ को दफना दिया है ,
कहीं पास जहां कभी कुछ नहीं था ,
अब सिर्फ एक शोर है। ।
बस वही एक शोर है।

(१०-जुलाई - १९९७ / ९.१० p.m )